Sawan poetry (Pehli barsaat)
पहली बरसात
देखो पानी आ रहा है,
जोर-जोर से पानी आ है,
घुमड़ घुमड़ कर सावन अमृत बरसा रहा है ,
और पहली बरसात में मेंढक भी खूब इतरा रहा है।
मेंढकी को देख-देख के पगला रहा है||
चारों ओर गजब की हरियाली छा रही है,
पर गन्दगी बह-बह कर मेरे घर में आ रही है।
सूअर भी गड्ढे में भुकला रहा है ,
बहुत दिन के बाद अच्छे पानी से नहा रहा है।
बच्चे मुझे बचपन याद दिला रहे है ,
छोटे-छोटे हाथो हाथों से कागज की नाव बना रहे है।
पानी भी गजब ढा रहा है ,
किसी को हँसा तो किसी को रुला रहा है।
किसी तरह गरीब अपनी जान सूखा रहा है ,
छाती से लगा कर अपने बच्चों को बचा रहा है।
बारिश का जूनून सब पर छा रहा है ,
बाबा के मुँह में एक दाँत नहीं है ,
पर नीबू लबा के भटूरे खा रहा है।
~ राहुल बरेलिया
( 180576 )
देखो पानी आ रहा है,
जोर-जोर से पानी आ है,
घुमड़ घुमड़ कर सावन अमृत बरसा रहा है ,
और पहली बरसात में मेंढक भी खूब इतरा रहा है।
मेंढकी को देख-देख के पगला रहा है||

पर गन्दगी बह-बह कर मेरे घर में आ रही है।
सूअर भी गड्ढे में भुकला रहा है ,
बहुत दिन के बाद अच्छे पानी से नहा रहा है।
बच्चे मुझे बचपन याद दिला रहे है ,
छोटे-छोटे हाथो हाथों से कागज की नाव बना रहे है।
पानी भी गजब ढा रहा है ,
किसी को हँसा तो किसी को रुला रहा है।
किसी तरह गरीब अपनी जान सूखा रहा है ,
छाती से लगा कर अपने बच्चों को बचा रहा है।
बारिश का जूनून सब पर छा रहा है ,
बाबा के मुँह में एक दाँत नहीं है ,
पर नीबू लबा के भटूरे खा रहा है।
~ राहुल बरेलिया
( 180576 )
Nice poem ❤❤
ReplyDeleteNice poem
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