कुछ कहा नहीं जाता (Loving Poem)

कुछ कहा  नहीं जाता  (Loving Poem)

कुछ कहा नहीं जाता  


ये जो सुनता हूँ मैं तुम्हारे बारे में ,
क्या करूँ कुछ सुना नहीं जाता ,
बोलने की ज़िद तो है पर,
 कुछ कहा नहीं जाता || 

यु तो ज़माने भर इंतज़ार कर नहीं सकते,
सोचते हे कुछ कह दें मगर फिर से ,
कुछ कहा नहीं जाता || 

यु तेरा हसना वो मुस्कराना खुश होना 
खुश करता है हमें  ,
पर फिर डर जाता हूँ ,
की कही रूठ कर मोहताज ना  कर दो इस     
ख़ुशी से भी हमें  ,
इसलिए बार-बार सोच कर फिर सोचता हूँ 
की कुछ थोड़ा ही सही ,
कह तो दे | 
पर तेरे गुस्सा होने के डर से ,
कुछ कहा नहीं जाता || 

तेरे मुस्कराने की याद कभी 
तन्हाई में रुला देती है तो कभी 
हमें उम्मीद बंधा देती है ,
कहे कुछ भी जमाना पर यकीन है 
समझोगी इस प्यार को बिन कहे ही ,
ये सोच-सोच कर लिखता तो हूँ 
पर मुँह से कुछ कहा नहीं जाता ||

                                                 ~ विक्रम सिंह 
                                                      ( 180861 )

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